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नागमती वियोग खण्ड-
अगहन देवस घटा निसि…
नखशिख खण्ड-
अधर सुरंग अमिअ रस भरे। बिंब सुरंग…
कनक दंड दुइ भुजा…
कहौं लिलाट दुइजि कै जोती। दुइजिहि…
का सिंगार ओहि बरनौं राजा। ओहिक…
कातिक सरद चंद…
कुहुकि कुहुकि…
चढ़ा अषाढ़ गँगन घन…
चैत बसंता…
जेठ जरै …
तपै लाग अब…
दसन चौक बैठे जनु हीरा। औ बिच…
मानसरोदक खण्ड-
धरीं तीर सब छीपक सारीं। सरवर…
नागमती चितउर…
नासिक खरग देऊँ कहि जोगू। खरग…
कहा मानसर चहा सो पाई। पारस…
नैन बाँक सरि पूजि न कोऊ। मान…
पाट महादेइ…
पिउ बियोग…
पुनि बरनौं का सुरंग…
पूस जाड़ थरथर…
फागुन पवन…
बरनौं गीवँ कूँज कै रीसी।…
बरनौं माँग सीस उपराहीं। सेंदुर…
बरुनी का बरनौं इमि बनी। साँधे…
जन्म खण्ड-
भइ ओनंत पदुमावति बारी। धज घोरैं…
भई पुछारि…
भए दस मास पूरि भै घरी। पदुमावति…
भर भादौं दूभर…
भा बैसाख तपनि…
भौंहैं स्याम धनुकु जनु ताना।…
नागमती-संदेश खण्ड
रतनसेनि के माइ…
रसना कहौं जो कह रस बाता। अँब्रित…
रोइ गँवाएउ बारह…
लाग कुआर…
लागेउ माँह परै…
सरवर तीर पदुमिनीं आईं। खौपा…
सावन बरिस मेह अतिवानी।…
स्रवन सीप दुइ दीप…
हिया थार कुच कंचन लाडू। कनक कचोर…