बरनौं गीवँ कूँज कै रीसी
पीछेनखशिख खण्ड-
बरनौं गीवँ कूँज कै रीसी। कंज नार जनु लागेउ सीसी।।
कुंदै फेरि जान गिउ काढ़ी। हरी पुछारि ठगी जनु ठाढ़ी।।
जनु हिय काढ़ि परेवा ठाढ़ा। तेहि तें अधिक भाउ गिउ बाढ़ा।।
चाक चढ़ाइ साँच जनु कीन्हा। बाग तुरंग जानु गहि लीन्हा।।
गिउ मंजूर तंवचुर जो हारा। वहै पुकारहिं साँझ संकारा।।
पुनि तिहि ठाउं परी तिरि रेखा। घूँघट पीक लीक सब देखा।।
धनि सो गीव दीन्हेउ बिधि भाऊ। दहुँ कासों लै करै मेराऊ।।
कंठ सिरी मुकुताहल माला सोहै अभरन गीवं।
को होई हार कंठ ओहि लागै केइं तपु साधा जीवं।।