हिया थार कुच कंचन लाडू
पीछेनखशिख खण्ड-
हिया थार कुच कंचन लाडू। कनक कचोर उठ करि चाडू।।
कुन्दन बेल साजि जनु कूँदे। अंब्रित भरे रतन दुइ मूँदे।।
बेधे भंवर कंट केतुकी। चाहह बेध कीन्ह केंचुकी।।
जोबन बान लेहुँ नहिं बागा। चाहंहि हुलसि हिएँ हठि लागा।।
अगिनि बान दुइ जानहु साँधे। जग बेधहिं जौं होहिं न बाँधे।।
उतँग जँभीर होइ रखवारी। छुइ को सकै राजा कै बारी।
दारिवँ दाख फरे अनचाखे। अस नारँग दहुँ का कहँ राखे।।
राजा बहुत मुए तपि लाइ लाइ भुइँ माथ।
काहुँ छुअै न पारे गए मरोरत हाथ।।