अधर सुरंग अमिअ रस भरे
पीछेनखशिख खण्ड-
अधर सुरंग अमिअ रस भरे। बिंब सुरंग लाजि बन फरे।।
फूल दुपहरी मानहुँ राता। फूल झरहिं जब जब कह बाता।।
हीरा गहै सो बिद्रुम धारा। बिहँसत जगत होइ उजियारा।।
भए मँजीठ पानन्ह रँग लागे। कुसुम रंग थिर रहा न आगे।।
अस कै अधर अमिअ भरि राखे। अबहिं अछत न काहूँ चाखे।।
मुख तँबोल रँग धारहिं रसा। केहि मुख जोग सी अँब्रित बसा।।
राता जगत देखि रँग राते। रुहिर भरे आछहिं बिहँसाते।।
अमिअ अधर अस राजा सब जग आस करेइ।
केहि कहँ कँवल बिगासा को मधुकर रस लेइ।।