सरवर तीर पदुमिनीं आईं

पीछे

मानसरोदक खण्ड-

सरवर तीर पदुमिनीं आईं। खौपा छोरि केस मोकराईं।।
ससि मुख अंग मलैगिरि रानी। नागन्ह झाँपि लीन्ह अरघानी।।
ओनए मेघ परी जग छाहाँ। ससि की सरन लीन्ह जनु राहाँ।।
छपि गै दिनहि भानु कै दसा। लै निसि नखत चाँद परगसा।।
भूलि चकोर दिस्टि तहँ लावा। मेघ घटा महँ चाँद दिखावा।।
दसन दामिनि कोकिल भाषीं। भौहें धनुक गगन लै राखीं।।
नैन खंजन दुइ केलि करेहीं। कुच नारंग मधुकर रस लेहीं।।
     सरवर रूप बिमोहा हिएँ हिलोर करेइ।
     पाय छुवै मकु पावौं तेहि मिसु लहरैं देइ।।  

पुस्तक | पद्मावत कवि | मलिक मुहम्मद जायसी भाषा | अवधी रचनाशैली | महाकाव्य छंद | दोहा-चौपाई