पुनि  बरनौं  का सुरंग कपोला

पीछे

नखशिख खण्ड-

पुनि  बरनौं  का सुरंग कपोला। एक नारंग  के  दुऔ अमोला।।
पुहुप  पंक  रस  अंब्रित  साँधे। केइं ये  सुरंग  खिरौरा  बाँधे।।
तेहि कपोल बाएँ तिल परा। जेइं तिल देख सो तिल तिल जरा।।
जनु  घुँघची  वह  तिल  करमुहाँ। बिरह  बान  साँधा  सामुहाँ।।
अगिनि  बान  तिअ जानहुँ  सूझा। एक कटाख लाख दुइ जूझा।।
सो तिल काल मेंटि नहिं गएऊ। अब वह गाल काल जग भएऊ।।
देखत नैन परी परिछाहीं। तेहितें रात स्याम उपराहीं।।
     सो तिल देखि कपोल पर गँगन रहा धुव गाड़ि।
     खिनहि उठै खिन बूड़ै डोलै नहिं तिल छाँड़ि।। 

पुस्तक | पद्मावत कवि | मलिक मुहम्मद जायसी भाषा | अवधी रचनाशैली | महाकाव्य छंद | दोहा-चौपाई