धरीं तीर सब छीपक सारीं

पीछे

मानसरोदक खण्ड-

धरीं तीर सब छीपक सारीं। सरवर महं पैठीं सब बारी।।
पाएँ नीर जानु सब बेलीं। हुलसी करहिं काम कै केलीं।।
नवल बसंत संवारहि करीं। होइ परगट चाहहिं रस भरीं।।
करिल केस बिसहर बिस भरे। लहरैं लेहि कंवल मुख धरे।।
उठे कोंप जनु दारिवँ दाखा। भई ओनंत प्रेम कै साखा।।
सरबर नहिं समाइ संसारा। चाँद नहाइ पैठ लिए तारा।।
धनि सो नीर ससि तरई उईं। अब कत दिस्टि कंवल औ कुईं।।
     चकई बिछुरि पुकारै कहाँ मिलहु हो नाँह।
     एक चाँद निसि सरग पर दिन दोसर जल माँह।। 

पुस्तक | पद्मावत कवि | मलिक मुहम्मद जायसी भाषा | अवधी रचनाशैली | महाकाव्य छंद | दोहा-चौपाई