कहौं लिलाट दुइजि कै जोती
पीछेनखशिख खण्ड-
कहौं लिलाट दुइजि कै जोती। दुइजिहि जोति कहाँ जग ओती।
सहस कराँ जो सुरुज दिपाई। देखि ललाट सोउ छपि जाई।।
का सरवर तेहि देउं मयंकू। चाँद कलंकी वह निकलंकू।।
औ चाँदहि पुनि राहु गगासा। वह बिनु राहु सदा परगासा।।
तेहि लिलाट पर तिलक बईठा। दुइजि पाट जानहुं ध्रुव दीठा।।
कनकु पाट जनु बैठेउ राजा। सबै सिंगार अत्र लै साजा।।
ओहि आगे थिर रहै न कोऊ। दहुँ का कहँ अस जुरा संजोऊ।।
खरग धनुक औ चक्र बान दुइ जग मारन तिन्ह नाऊँ।
सुनि कै परा मुरुछि कै राजा मो कहँ भए एक ठाऊँ।।