नासिक खरग देऊँ कहि जोगू

पीछे

नखशिख खण्ड-

नासिक खरग देऊँ कहि जोगू। खरग खीन ओहि बदन सँजोगू।।
नासिक देखि लजानेउ सुआ। सूक आइ बेसरि होइ उआ।।
सुआ सो पिअर हिरामनि लाजा। औरु भाउ का बरनौ राजा।।
सुआ सो नाँक कठोर पँबारि। वह कोंवलि तिल पुहुप सँवारी।।
पुहुप सुगंध करहि सब आसा। मकु हिरगाइ लेइ हम बासा।।
अधर दसन पर नासिक सोभा। दारिवँ देखि सुआ मन लोभा।।
खंजन दुहुँ दिसि केलि कराहीं। दहुँ वह रस को पाव को नाहीं।।
     देखि अमि रस अर्थरन्हि भएउ नासिका कीर।
     पवन बास पहुँचावै अस रम छाँड़ न तीर।। 
 

पुस्तक | पद्मावत कवि | मलिक मुहम्मद जायसी भाषा | अवधी रचनाशैली | महाकाव्य छंद | दोहा-चौपाई