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अँखियाँ हरि दरसन की भूखी।कैसे रहैं रूपरसराची…
आए जोग सिखावन पाँड़े।परमारथी पुराननि लादे…
उद्धव ! बेगिही ब्रज जाहु।सुरति सँदेस सुनाय…
उद्धव मन अभिलाष बढ़ायो।जदुपति जोग जानि जिय…
ऊधो! जुवतिन ओर निहारौ।तब यह जोग मोट हम आगे…
ऊधो! जोग बिसरि जनि जाहु।बाँधहु गाँठि कहूँ…
ऊधो! जोग सुन्यो हम दुर्लभ।आपु कहत हम सुनत…
ऊधो! तुम अति चतुर सुजान।जेहि पहिले रँग रँगी…
ऊधो! ब्रज की दसा बिचारो।ता पाछे यह सिद्धि…
ऊधो! भली करी तुम आए।ये बातें कहि कहि या दुख…
ऊधो! मन नहिं हाथ हमारे।रथ चढ़ाय हरि संग गए…
ऊधो! हम अजान मति भोरी।जानति है ते जोग की…
काहे को रोकत मारग सूधो ?सुनहु मधुप ! निर्गुन…
गोकुल सबै गोपाल उपासी।जोग अंग साधत जे ऊधो…
जोग ठगौरी ब्रज न बिकैहै।यह ब्योपार तिहारो…
तबहि उपँगसुत आय गए।सखा सखा कछु अंतर नाहीं…
फिरि फिरि कहा सिखावत मौन।दुसह वचन अलि यों…
मधुकर! ल्याए जोग सँदेसो।भली स्याम कुसलात…
मधुकर! हम न होहि वे बेली।जिनको तुम तजि भजत…
हम तो कान्ह केलि की भूखी।कैसे निरगुन सुनहि…
हमारे हरि हारिल की लकरी।मन बच क्रम नँदनंदन…