मधुकर! हम न होहि वे बेली

पीछे

मधुकर! हम न होहि वे बेली।
जिनको तुम तजि भजत प्रीति बिनु करत कुसुमरस केली।
बारे ते बलबीर बढ़ाई पोसी प्याई पानी।
बिन प्रिय परस प्रात उठि फूलत होत सदा हित हानी।
ये बल्ली बिहरत बृंदाबन अरुझी स्याम तमालहिं।
प्रेमपुष्प रस बास हमारे बिलसत मधुप गोपालहिं।
जोग समीर धीर नहिं डोलत, रूपडार ढिग लागी।
सूर पराग न तजत हिये तें कमल नयन अनुरागी।। 

पुस्तक | सूरसागर (भ्रमरगीतसार) कवि | सूरदास भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | पद