उद्धव मन अभिलाष बढ़ायो

पीछे

उद्धव मन अभिलाष बढ़ायो।
जदुपति जोग जानि जिय साँचो नयन अकास चढ़ायो।
नारिन पै मोको पठवत हौ कहत सिखावन जोग।
मनहीं मन अब करत प्रसंसा है मिथ्या सुखभोग।
आयसु मानि लियो सिर ऊपर प्रभु आज्ञा परमान।
सूरदास प्रभु पठवत गोकुल मैं क्यों कहौं कि आन।। 

पुस्तक | सूरसागर (भ्रमरगीतसार) कवि | सूरदास भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | पद