ऊधो! जोग बिसरि जनि जाहु

पीछे

ऊधो! जोग बिसरि जनि जाहु।
बाँधहु गाँठि कहूँ जनि छूटै फिरि पाछे पछिताहू।
ऐसी बस्तु अनूपम मधुकर मरम न जानै और।
ब्रजवासिन के नाहिं काम की, तुम्हरे ही है ठौर।
जे हरि हित करि हमको पठयो सौ हम तुमको दीन्हीं
सूरदास नरियर ज्यों विष को करै बंदना कीन्हीं।।

पुस्तक | सूरसागर (भ्रमरगीतसार) कवि | सूरदास भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | पद