ऊधो! भली करी तुम आए
पीछेऊधो! भली करी तुम आए।
ये बातें कहि कहि या दुख में ब्रज के लोग हँसाए।
कौन काज बृंदावन को सुख, दही भात की छाक।
अब वै कान्ह कूबरी राचे बने एक ही ताक।
मोर मुकुट मुरली पीतांबर, पठवौ सोज हमारी।
अपनी जटाजूट अरु मुद्रा लीजै भस्म अधारी।
वै तौ बड़े, सखा तुम उनके, तुमको सुगम अनीति।
सूर सबै मति भली स्याम की जमुना जल सों प्रीति।।