काहे को रोकत मारग सूधो

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काहे को रोकत मारग सूधो ?
सुनहु मधुप ! निर्गुन कंटक तें राजपंथ क्यों रूँधो ?
कै तुम सिखै पठाए कुब्जा, कै कही स्यामघन जूधौ।
बेद पुरान सुमृति सब ढूँढ़ो जुवतिन जोग कहूँ धों ?
ताको कहा परेखो कीजै जानत छाछ न दूधो।
सूर मूर अक्रूर गए लै ब्याज निबेरत ऊधों।।

पुस्तक | सूरसागर (भ्रमरगीतसार) कवि | सूरदास भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | पद