मनि मनिक महँगे किये

पीछे

1.    मनि मनिक महँगे किये, सस्तो तृन जल नाज।
        याही ते हम जानियत, राम गरीब निवाज।। 

 

2.    रहिमन गली है साँकरी, दूजो ना ठहराहिं।
        आपु अहै तो हरि नहीं, हरि तो आपुन नाहिं।।  

 

3.    रहिमन थोरे दिनन को, कौन करे मुँह स्याह।
        नहीं छलन को परतिया, नहीं करन को ब्याह।। 

 

4.    मुनि नारी पाषान ही, कपि पसु गुह मातंग।
        तीनों तारे राम जू, तीनों मेरे अंग।। 

 

5.    मन से कहाँ रहीम प्रभु, दृग सो कहाँ दिवान।
         देखि दृगन जो आदरै, मन तेहि हाथ बिकान।। 
 

पुस्तक | रहीम रचनावली कवि | रहीम भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | दोहा