गद्यांश (विषय - मानव-समाज)
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आर्यावर्त्त-जैसी विचित्र समाज-व्यवस्था मैंने कहीं नहीं देखी है
आर्यावर्त्त-जैसी विचित्र समाज-व्यवस्था मैंने कहीं नहीं देखी है। यहाँ इतना स्तर-भेद है कि मुझे आश्चर्य…
Read Moreकहीं-न-कहीं मनुष्य-समाज ने अवश्य गलती की है
इस रास्ते से उल्लास और उन्माद चाहे गये हों, अनुराग और औत्सुक्य नहीं गये। यह सब क्यों हो रहा है ?…
Read Moreसत्य इस समाज-व्यवस्था में प्रच्छन्न होकर वास कर रहा है
जो समाज-व्यवस्था झूठ को प्रश्रय देने के लिए ही तैयार की गई है, उसे मानकर अगर कोई कल्याण-कार्य करना…
Read Moreसभी स्त्रियों को पारिवारिक सम्बन्धों में ही क्यों पुकारा जाता है
“अच्छा माँ, सभी स्त्रियों को पारिवारिक सम्बन्धों में ही क्यों पुकारा जाता है ?“
“अपने…
हर व्यक्ति का अपना एक सत्य होता है
“मैं समझता हूँ कि हर व्यक्ति का अपना एक सत्य होता है। तुम्हारा भी है। है न?
“शायद!“
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