जेति संपति कृपन कैं, तेती सूमति जोर
पीछे1. जेति संपति कृपन कैं, तेती सूमति जोर।
बढ़त जात ज्यौं ज्यौं उरज, त्यौं त्यौं होत कठोर।।
2. नव नागरितन-मुलुकु लहि जोबन-आमिर-जौर।
घटि बढ़ि तैं बढ़ि घटि रकम करीं और की और।।
3. कन दैबौ सौंप्यौ ससुर, बहू थुरहथी जानि।
रूप-रहचटैं लगि लग्यौ माँगन सबु जगु आनि।।
4. संगति-दोषु लगै सबनु, कहै ति साँचे बैन।
कुटिल-बंक-भ्रुव-सँग भए कुटिल, बंक-गति नैन।।