रहिमन बहु भेषज करत

पीछे

1.    रहिमन धोखे भाव से, मुख से निकसे राम।
        पावत पूरन परम गति, कामादिक को धाम।। 

 

2.    रहिमन बहु भेषज करत, ब्याधि न छाँड़त साथ।
        खग मृग बसत अरोग बन, हरि अनाथ के नाथ।।  

 

3.    रहिमन मनहिं लगाइ के, देखि लेहु किन कोय।
        नर को बस करिबो कहा, नारायण बस होय।।  

 

4.    रहिमन रिस को छाँड़ि कै, करौ गरीबी भेस।
        मीठो बोलो नै चलो, सबै तुम्हारो देस।। 

 

5.    रहिमन यहि संसार में, सब सौं मिलिये धाइ।
        ना जानैं केहि रूप में, नारायण मिलि जाइ।। 
 

पुस्तक | रहीम रचनावली कवि | रहीम भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | दोहा