काव्यांश (पुस्तक - परिमल)

जागो फिर एक बार

जागो फिर एक बार!

समर में अमर कर प्राण, Read More

ध्वनि

अभी न होगा मेरा अन्त।
अभी-अभी ही तो आया है Read More

पतनोन्मुख

हमारा डूब रहा दिनमान!

मास-मास दिन-दिन प्रतिपल Read More

प्रार्थना

जीवन प्रात-समीरण-सा लघु
विचरण-निरत करो। Read More

यमुना के प्रति

स्वप्नों-सी उन किन आँखों की
पल्लव छाया में…

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