आनँद-अनुभव होत नहिं, बिना प्रेम जग जान

पीछे

1.    आनँद-अनुभव होत नहिं, बिना प्रेम जग जान।
        कै वह विषयानन्द, कै ब्रह्मानंद बखान।।


2.    ज्ञान, कर्मऽरु, उपासना, सब अहमिति को मूल।
        दृढ़-निश्चय नहिं होत-बिन, किए प्रेम अनुकूल।।


3.    शास्त्रन पढ़ि पंडित भए, कै मौलवी कुरान।
        जुए प्रेम जान्यो नहीं, किहा कियो रसखान।।


4.    काम, क्रोध, मद, मोह, भय, लोभ, द्रोह, मात्सर्य।
        इन सबहीं तें प्रेम है, परे कहत मुनिवर्य।।


5.    बिनु गुन जोबन रूप धन, बिनु स्वारथ हित जानि।
        शुद्ध, कामना तें रहित, प्रेम सकल-रसखानि।।

पुस्तक | प्रेमवाटिका कवि | रसखान भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | दोहा
विषय | प्रेम,