रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि

पीछे

1.    रहिमन जग जीवन बड़े, काहु न देखे नैन।
        जाय दशानन अछत ही, कपि लागे गथ लेन।।  


2.    रहिमन जाके बाप को, पानी पिअत न कोय।
       ताकी गैल आकाश लौं, क्यो न कालिमा होय।।  


3.    रहिमन जो रहिबो चहै, कहै वाहि के दाँव।
        जो बासर को निस कहै, तौ कचपची दिखाव।। 
 

4.    रहिमन दानि दरिद्र तर, तऊ जाँचबे योग।
        ज्यों सरितन सूखा परे, कुआँ खनावत लोग।।  


5.    रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
       जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तलवारि।।

पुस्तक | रहीम रचनावली कवि | रहीम भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | दोहा
विषय | नीति,