अब रहीम चुप करि रहउ समुझि दिनन के फेर

पीछे

1.    अंतर दाव लगी रहै धुआँ न प्रगटै सोइ।
        के जिय आपन जानहीं कै जिहि बीती होइ।।


2.    अब रहीम चुप करि रहउ समुझि दिनन के फेर।
        जब दिन नीके आइहैं बनत न लगिहै देर।।


3.    अब रहीम मुश्किल पड़ी गाढ़े दोऊ काम।
        साँचे से तो जग नहीं झूठे मिलैं न राम।।


4.    असमय परे रहीम कहि माँगि जात तजि लाज।
        ज्यों लछमन माँगन गए पारासर के नाज।।


5.    उरग तुरग नारी नृपति नीच जाति हथियार।
        रहिमन इन्हें सँभारिए पलटत लगै न बार।।
 

पुस्तक | रहीम रचनावली कवि | रहीम भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | दोहा
विषय | नीति,