रहिमन उजली प्रकृत को, नहीं नीच को संग

पीछे

1.    रहिमन कबहुँ बड़ेन के, नाहिं गर्व को लेस।
        भार धरैं संसार को, तऊ कहावत सेस।। 


2.    रहिमन उजली प्रकृत को, नहीं नीच को संग।
       करिया बासन कर गहे, कालिख लागत अंग।।  


3.    रहिमन नीचन संग बसि, लगत कलंक न काहि।
        दूध कलारी कर गहे, मद समुझै सब ताहि।। 


4.    रहिमन रिस सहि तजत नहीं, बड़े प्रीति की पौरि।
        मूकन मारत आवई, नींद बिचारी दौरी।। 


5.    रहिमन रीति सराहिए, जो घट गुन सम होय।
        भीति आप पै डारि कै, सबै पियावै तोय।। 
 

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