मेरी भव-बाधा हरौ

पीछे

1.    मेरी भव-बाधा हरौ, राधा नागरि सोइ।
       जा तन की झाईं परै स्यामु हरित-दुति होइ।। 

 

2.    कोऊ कोरिक संग्रहौ, कोऊ लाख हजार।
       मो संपति जदुपति सदा बिपति-बिदारनहार।। 

 

3.    या अनुरागी चित्त की गति समुझै नहिं कोइ।
       ज्यौं ज्यौं बूड़ै स्याम रंग, त्यौं त्यौं उज्जलु होइ।। 

 

4.    मोहन-मूरति स्याम की अति अदभुत गति जोइ।
       बसतु सु चित-अन्तर, तऊ प्रतिबिंबितु जग होइ।। 

 

5.    तजि तीरथ, हरि-राधिका-तन-दुति करि अनुरागु।
       जिहिं ब्रज-केलि-निकुंज-मग पग पग हो प्रयागु।। 
 

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