छुटै न लाज, न लालचौ प्यौ लखि नैहर-गेह

पीछे

1.    नैंकौ उहिं न जुदी करी, हरषि जु दी तुम माल।
       उर तैं बासु छुट्यौ नहीं दास छुटैं हूँ, लाल।। 


2.    इन दुखिया अँखियानु कौं सुखु सिरज्यौई नाँहि।
       देखैं बनै न देखतै, अनदेखैं अकुलाँहि।। 


3.    नई लगनि, कुल की सकुच बिकल भई अकुलाइ।
       दुहूँ ओर ऐंची फिरति, लौं दिनु जाइ।। 


4.    छुटै न लाज, न लालचौ प्यौ लखि नैहर-गेह।
       सटपटात लोचन खरे भरे सकोच, सनेह।। 


5.    समरस-समर-सकोच-बस-बिबस न ठिक ठहराइ।
       फिरि फिरि उझकति, फिरि दुरति, दुरि दुरि उझकति आइ।।

 

6.    करे चाह सौं चुटकि कै खरैं उड़ौहैं मैन।
      लाज नवाऐं तरफरत, करत खूँद सी नैन।।

पुस्तक | बिहारी सतसई कवि | बिहारीलाल भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | दोहा