पँखुरी लगी गुलाब की गात न जानी जाइ
पीछे1. अंग अंग छबि की लपट उपटति जाति अछेह।
खरी पातरीऊ, तऊ लगै भरी सी देह।।
2. बिहँसति, सकुचति सी, दिऐं कुच-आँचर-बिच बाँह।
भीजैं पट तट कौं चली, न्हाइ सरोवर माँह।।
3. बरन, बास, सुकुमारता, सब बिधि रही समाइ।
पँखुरी लगी गुलाब की गात न जानी जाइ।।
4. रंच न लखियति पहिरि यौं कंचन सैं तन, बाल।
कुंभिलानैं जानी परै उर चंपक की माल।।
5. बढ़त निकसि कुच-कोर-रुचि, कढ़त गौर भुजमूल।
मनु लुटि गौ लोटनु चढ़त, चोंटत ऊँचे फूल।।