लिखन बैठि जाकी सबी

पीछे

1.    डीठि न परतु समान-दुति कनकु कनक सैं गात।
       भूषन कर करकस लगत परसि पिछाने जात।। 


2.    पहिरि न भूषन कनक के, कहि आवत इहिं हेत।
       दरपन के से मोरचे, देह दिखाई देत।। 


3.    सहज सेत पँचतोरिया पहिरत अति छबि होति।
      जलचादर के दीप लौं जगमगाति तन-जोति।। 


4.    लिखन बैठि जाकी सबी गहि गहि गरब गरूर।
       भए न केते जगत के चतुर चितेरे कूर।। 


5.    भाल-लाल बेंदी-छए छुटे बार छबि देत।
       गह्यौ राहु, अति आहु करि, मनु ससि सूर-समेत।।

पुस्तक | बिहारी सतसई कवि | बिहारीलाल भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | दोहा