बेसरि-मोती-दुति-झलक परी

पीछे

1.    बेसरि-मोती-दुति-झलक परी ओठ पर आइ।
चूनौ होइ न चतुर तिय, क्यों पट-पोछ्यों जाइ।। 


2.    दुरत न कुच बिच कंचुकी चुपरी, सारी सेत।
कवि-आँकनु के अरथ लौं प्रगटि दिखाई देत।। 


3.    सोनजुही सी जगमगति अँग अँग जोबन-जोति।
सुरँग, कसूँभी कंचुकी दुरँग देह-दुति होति।। 


4.    चिलक, चिकनई, चटक सौं लफति सटक लौं आइ।
नारि सलोनी साँवरी नागिनि लौं डसि जाइ।।  


5.    मिलि चंदन-बेंदी रही गौरैं मुँह न लखाइ।
ज्यौं ज्यौं मद-लाली चढ़ै, त्यौं त्यौं उघरति जाइ।। 
 

पुस्तक | बिहारी सतसई कवि | बिहारीलाल भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | दोहा