खौरि-पनिच भृकुटी-धनुषु
पीछे1. चलन न पावतु निगम-मगु जगु, उपज्यौ अति त्रासु।
कुच-उतंग गिरिबर-गह्यौ मैना मैनु मवासु।।
2. सहज सचिक्कन, स्याम-रुचि, सुचि, सुगंध, सुकुमार।
गनतु न मनु पथु अपथु, लखि बिथुरे सुथरे बार।।
3. केसरि कै सरि क्यौं सकै, चंपकु कितकु अनूपु।
गात रूप लखि जातु दुरि जातरूप कौ रूपु।।
4. खौरि-पनिच भृकुटी-धनुषु बधिकु समरु, तजि कानि।
हनतु तरुन-मृग तिलक-सर सुरक-भाल, भरि तानि।।
5. नीकौ लसतु लिलार पर टीकौ जरितु जराइ।
छबिहिं बढ़ावतु रबि मनौ ससि-मंडल मैं आइ।।