अंग-अंग-नग जगमगत
पीछे1. सायक-सम मायक नयन, रँगे बिबिध रँग गात।
झखौ बिलखि दुरि जात जल, लखि जलजात लजात।।
2. बर जीते सर मैन के, ऐसे देखे मैं न।
हरिनी के नैनानु तैं, हरि, नीके ए नैन।।
3. अंग-अंग-नग जगमगत दीपसिखा सी देह।
दिया बढ़ाएँ हूँ रहै बड़ौ उज्यारौ गेह।।
4. छुटी न सिसुता की झलक, झलक्यौ जोबनु अंग।
दीपति देह दुहून मिलि दिपति ताफता-रंग।।
5. पत्रा हीं तिथि पाइयै वा घर के चहुँ पास।
नितप्रति पून्यौई रहै आनन-ओप-उजास।।