गद्यांश (विधा - निबन्ध)
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जहाँ कहीं भी तेज है, दृढ़ता है, अपराजित हृदय है, पवित्रता और न्याय की रक्षा के लिए बाँहें धनुष चढ़ा…
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गंधर्व और कंदर्प वस्तुतः एक ही शब्द के भिन्न-भिन्न उच्चारण हैं।
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आज तो सिर्फ दो ही दल हैं इस देश में। एक दल में हैं ठेकेदार, व्यवसायी, अफसर, राजनीतिज्ञ तथा पत्रकार…
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कोरी सौंदर्य साधना, कोरा सौंदर्यबोध निरर्थक है। इसे शील से जोड़कर ही रचनात्मक और मंगलमय बनाया जा सकता…
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यह पीपल दार्शनिकों का भी वृक्ष है। भारतीयों के मन पर यह आर्यों के आगमन के पूर्व से ही हावी है। मोहनजोदड़ो-हड़प्पा…
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मेरा जीवहंस ऊपर मँडराता रहा नील व्योम में, नील परमपद के मध्य और नीचे प्रभु के मन-समुद्र से उत्पन्न…
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सारे मानवीय रिश्ते, सारे भाव, सारी करुणा-प्रेम-सहानुभूति का कारोबार उन मूल्यों या सत्यों पर निर्भर…
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दुनिया है कि मतलब से मतलब है, रस चूस लेती है छिलका और गुठली फेंक देती है।
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संप्रदाय-स्थापना का अभिशाप यह है कि उसके भीतर रहनेवाले का स्वाधीन चिंतन कम हो जाता है। संप्रदाय की…
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हमारे साहित्य में ’आत्मा’ का प्रतीक ’हंस’ माना गया है तो ’मन’…
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’’यह रात है कि अफीम है !’’ कहकर नरेस मिस्त्री रोज सोने के पूर्व करवट बदला…
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सृष्टि का आदिम गर्भाधान क्षण भी घोर तुषाराच्छादित अखण्ड रात्रि का क्षण था-एक बिन्दु पर आकर देश-काल…
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जब जन्म लिये हैं तो पगहा-खूँटा चाहे वह कितना ही सूक्ष्म हवाई क्यों न हो, चाहिए। अतः घर का महत्त्व…
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दार्शनिकों ने माया-दर्पण का बखान किया है, सन्तों ने ’हिरदय-दरपन’ को धो-पोंछकर निर्मल-प्रसन्न…
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मेरे विद्याव्रत का आरम्भ उस दिन से नहीं जिस दिन चतुर्वेदी जी ने कान में -ऊँ भूर्भुवः स्वः....’…
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मनुष्य के अन्दर शायद स्वर्ण का आकर्षण अधिक प्रबल है, इसी से वह सदैव “एल्डोरेडो“ की कल्पना…
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यह ‘नित्य अकेलापन‘ रचना-प्रक्रिया की अनिवार्य आवश्यकता है। सृजन के चरम क्षण के…
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तम या कालिमा आदिम रंग है। इसका आदिम वर्ण है सर्वग्रासी। यहाँ तक कि अन्धकार का भी भक्षण कर जाने वाली…
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मेघ बरसने के बाद आसमान शान्त और साफ हो जाता है, वैसे ही मन भी रति के बाद निर्मल, शुभ्र और कामनाहीन…
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इस मन या हृदय का कोई ‘विज्ञान‘ नहीं हो सकता, इसका ‘काव्य‘ ही हो सकता है।
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भारतीय किसान के पास ’रोष’ नाम की वस्तु है ही नहीं। वह तो सनातन ’होरी’ है,…
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आज का साहित्यकार एक ही प्रतिबद्धता को श्रेय का मार्ग मानता है। पर एकहरी प्रतिबद्धता और एकहरा…
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वसन्त उल्लास की ऋतु है। वैष्णवों ने इसी उल्लास को रस की दीक्षा का माध्यम बनाया है। इसमें न तो ग्रीष्म…
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चैत्र का वैदिक नाम मधु है और वैशाख का माधव।
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संयम जब अत्यन्त असहज और अप्राकृतिक हो जाता है तो विपरीत ध्रुव की ही जीत होती है। असहज और अप्राकृतिक…
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’’भइयाजी, यह अपकर्म का महाभारत है’’ आज उपाध्याय की जबान पर जगदम्बा बैठ गयी…
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मैं बीसवीं शती का जीव हूँ। मैं क्षण-भोग का विश्वासी हूँ। हवा, धरती और हरीतिमा ही मेरी नायिकाएँ हैं।…
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विन्ध्याचल की पहाड़ियों में महुआ के काफी जंगल हैं। यहाँ महुआ वन अपने-आप उपजता है और खटीक आदि गरीब…
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ढूँढ़ना स्वतः एक अमृत-फल है। सारा प्यार ढूँढ़कर पाने में ही है। बिना ढूँढ़ने का श्रम किये प्रिय वस्तु…
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कमजोरों में भावुकता ज्यादा होती होगी।
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वसंत आता…
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शुचि मास अर्थात् क्वार मास। क्वार मास संयम, कौमार्य और पवित्रता का प्रतीक है। इस मास में सूर्य कन्या…
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केवल मनुष्य के पास शब्द हैं। मात्र मनुष्य की ही सरस्वती शब्दमयी है। शब्द का स्रोत ‘प्रातिभज्ञान‘…
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यहाँ पर समझने की बात है कि जिसे सारा देश ‘पूरी‘ कहता है उसे भोजपुरी लोग ‘पूड़ी‘…
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आज किसान एक ओर सरकार और बनिये द्वारा, दूसरी ओर श्रमिक-शक्ति की राजनीति द्वारा दो पाटों में फँसकर…
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हेमन्त का सबसे बड़ा आकर्षण है पत्तियों का पीला पड़ जाना और जरा-सी हवा डोलने पर भू-पतित हो जाना।…
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