गद्यांश (पुस्तक - रस-आखेटक)

एक महाश्वेता रात्रि

यह पीपल दार्शनिकों का भी वृक्ष है। भारतीयों के मन पर यह आर्यों के आगमन के पूर्व से ही हावी है। मोहनजोदड़ो-हड़प्पा…

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एक महाश्वेता रात्रि

मेरा जीवहंस ऊपर मँडराता रहा नील व्योम में, नील परमपद के मध्य और नीचे प्रभु के मन-समुद्र से उत्पन्न…

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जन्मान्तर के धूम्र-सोपान

’’यह रात है कि अफीम है !’’ कहकर नरेस मिस्त्री रोज सोने के पूर्व करवट बदला…

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जन्मान्तर के धूम्र-सोपान

सृष्टि का आदिम गर्भाधान क्षण भी घोर तुषाराच्छादित अखण्ड रात्रि का क्षण था-एक बिन्दु पर आकर देश-काल…

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दर्पण-विश्वासी

दार्शनिकों ने माया-दर्पण का बखान किया है, सन्तों ने ’हिरदय-दरपन’ को धो-पोंछकर निर्मल-प्रसन्न…

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देह-वल्कल

मेरे विद्याव्रत का आरम्भ उस दिन से नहीं जिस दिन चतुर्वेदी जी ने कान में -ऊँ भूर्भुवः स्वः....’…

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फुटकल पंक्तियाँ

मेघ बरसने के बाद आसमान शान्त और साफ हो जाता है, वैसे ही मन भी रति के बाद निर्मल, शुभ्र और कामनाहीन…

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मोह मुद्गर

’’भइयाजी, यह अपकर्म का महाभारत है’’ आज उपाध्याय की जबान पर जगदम्बा बैठ गयी…

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रस-आखेटक

मैं बीसवीं शती का जीव हूँ। मैं क्षण-भोग का विश्वासी हूँ। हवा, धरती और हरीतिमा ही मेरी नायिकाएँ हैं।…

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रस-आखेटक

विन्ध्याचल की पहाड़ियों में महुआ के काफी जंगल हैं। यहाँ महुआ वन अपने-आप उपजता है और खटीक आदि गरीब…

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रोहिणी-मेघ

ढूँढ़ना स्वतः एक अमृत-फल है। सारा प्यार ढूँढ़कर पाने में ही है। बिना ढूँढ़ने का श्रम किये प्रिय वस्तु…

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