प्रार्थना

पीछे

जीवन प्रात-समीरण-सा लघु
विचरण-निरत करो।
तरु-तोरण-तृण-तृण की कविता
छवि-मधु-सुरभि भरो।
अंचल-सा न करो चंचल,
क्षण-भंगुर,
नत नयनों में स्थिर दो बल,
अविचल उर;
स्वर-सा कर दो अविनश्वर,
ईश्वर-मज्जित
शुचि चन्दन-वन्दन-सुन्दर,
मन्दर-सज्जित;
मेरे गगन-मगन मन में अयि
किरणमयी, विचरो-
तरु-तोरण-तृण-तृण की कविता
छवि-मधु-सुरभि भरो।

पुस्तक | परिमल लेखक | सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला भाषा | खड़ी बोली विधा |