कौन बड़ाई जलधि मिलि, गंग नाम भो धीम

पीछे

1.    कौन बड़ाई जलधि मिलि, गंग नाम भो धीम।
        केहि की प्रभुता नहिं घटी, पर घर गये रहीम।। 


2.    गरज आपनी आपसों, रहिमन कही न जाय।
        जैसे कुल की कुलबधू, पर घर जाय लजाय।। 


3.    धन थोरो इज्जत बड़ी, कह रहीम का बात।
        जैसे कुल की कुलबधू, चिथड़न माँह समात।। 


4.    बड़ माया को दोष यह, जो कबहूँ घटि जाय।
        तो रहीम मरिबो भलो, दुख सहि जिय बलाय।।  


5.    बड़े पेट के भरन को, है रहीम दुख बाढ़ि।
        यातें हाथी हहरि कै, दयो दाँत द्वै काढ़ि।। 

पुस्तक | रहीम रचनावली कवि | रहीम भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | दोहा