लाइ-लाइ आगि भागे बालजाल जहाँ तहाँ
पीछेलाइ-लाइ आगि भागे बालजाल जहाँ तहाँ,
लघु ह्वै निबुकि गिरि मेरुतें बिसाल भो।
कौतुकी कपीसु कूदि कनक-कँगूराँ चढ़्यो,
रावन-भवन चढ़ि ठाढ़ो तेहि काल भो।।
‘तुलसी’ विराज्यो ब्योम बालधी पसारि भारी,
देखें हहरात भट, कालु सो कराल भो।
तेजको निधानु मानो कोटिक कृसानु-भानु,
नख बिकराल, मुखु तैसो रिस लाल भो।।