दबकि दबोरे एक, बारिधिमें बोरे एक

पीछे

दबकि दबोरे एक, बारिधिमें बोरे एक,
       मगन महीमें, एक गगन उड़ात हैैं।
पकरि पछारे कर, चरन उखारे एक,
        चीरि-फारि डारे, एक मीजि मारे लात हैं।।
तुलसी लखत, रामु, रावनु, बिबुध, बिधि,
        चक्रपानि, चंडीपति, चंडिका सिहात हैं।
बड़े-बड़े बानइत बीर बलवान बड़े,
        जातुधान-जूथप निपाते बातजात हैं।।

पुस्तक | कवितावली कवि | गोस्वामी तुलसीदास भाषा | अवधी रचनाशैली | मुक्तक छंद | कवित्त