काव्यांश (विषय - फागुन-होली)

आई खेलि होरी ब्रजगोरी वा किसोरी संग

आई खेलि होरी ब्रजगोरी वा किसोरी संग
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कहाँ एतो पानिप बिचारी पिचकारी धरै

कहाँ एतो पानिप बिचारी पिचकारी धरै,
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खेलत फाग सुहाग भरी

खेलत फाग सुहाग भरी अनुरागहिं लालन कों धरि कै। Read More

गोकुल को ग्वाल काल्हि चौमुँह की ग्वालिन सौं

गोकुल को ग्वाल काल्हि चौमुँह की ग्वालिन सौं Read More

घर ही घर चौचँद-चाँचरि दै

घर ही घर चौचँद-चाँचरि दै बहु भाँतिन रंग रचाय रह्यौ। Read More

दसन-बसन ओली भरियै रहै गुलाल

दसन-बसन ओली भरियै रहै गुलाल,
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पीरी परि देह छीनी राजति सनेह भीनी

पीरी परि देह छीनी राजति सनेह भीनी,
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फागुन महीना की कही ना परै बातै

फागुन महीना की कही ना परै बातै दिन-
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फागुन लाग्यो सखी जब तें

फागुन लाग्यो सखी जब तें तब तें ब्रजमंडल धूम मच्यो…

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रंग लियौ अबलानि के अंग तें

रंग लियौ अबलानि के अंग तें च्वाय कियौ चितचैन को…

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सोंधे की बास उसासहि रोकति

सोंधे की बास उसासहि रोकति चंदन दाहक गाहक जी को। Read More