आप एक सदस्य के रूप में हिंदी साहित्य कोष का हिस्सा बनें
आई खेलि होरी ब्रजगोरी वा किसोरी संग …
कहाँ एतो पानिप बिचारी पिचकारी धरै, …
खेलत फाग सुहाग भरी अनुरागहिं लालन कों धरि कै। Read More
गोकुल को ग्वाल काल्हि चौमुँह की ग्वालिन सौं Read More
घर ही घर चौचँद-चाँचरि दै बहु भाँतिन रंग रचाय रह्यौ। Read More
दसन-बसन ओली भरियै रहै गुलाल, …
पीरी परि देह छीनी राजति सनेह भीनी, …
फागुन महीना की कही ना परै बातै दिन- …
फागुन लाग्यो सखी जब तें तब तें ब्रजमंडल धूम मच्यो…
रंग लियौ अबलानि के अंग तें च्वाय कियौ चितचैन को…
सोंधे की बास उसासहि रोकति चंदन दाहक गाहक जी को। Read More