काव्यांश (छंद - लावनी)

ओ जीवन की मरु मरीचिका

चिंता सर्ग-


ओ जीवन की मरु मरीचिका,…

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यज्ञ समाप्त हो चुका तो भी

कर्म सर्ग-

 

यज्ञ समाप्त हो चुका…

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यमुना के प्रति

स्वप्नों-सी उन किन आँखों की
पल्लव छाया में…

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