ईस-सीस बससि

पीछे

ईस-सीस बससि, त्रिपथ लससि, नभ-पताल-धरनि।
सुर-नर-मुनि-नाग-सिद्ध-सुजन मंगल-करनि।।
देखत दुख-दोष-दुरित-दाह-दारिद-दरनि।
सगर-सुवन साँसति-समनि, जलनिधि जल भरनि।।
महिमाकी अवधि करसि बहु बिधि हरि-हरनि।
तुलसी करु बानि बिमल, बिमल बारि बरनि।।
 

पुस्तक | विनय पत्रिका कवि | गोस्वामी तुलसीदास भाषा | अवधी रचनाशैली | मुक्तक छंद | पद