देखो देखो, बन बन्यो आजु उमाकंत

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देखो देखो, बन बन्यो आजु उमाकंत। मानों देखन तुमहिं आई रितु बसंत।।
जनु तनुदुति चंपक-कुसुम-माल। बर बसन नील नूतन तमाल।।
कलकदलि जंघ, पद कमल लाल। सूचत कटि केहरि, गति मराल।।
भूषन प्रसून बहु बिबिध रंग। नूपुर किंकिनि कलरव बिहंग।।
कर नवल बकुल-पल्लव रसाल। श्रीफल कुच, कंचुकिलता-जाल।।
आनन सरोज, कच मधुप गुंज। लोचन बिसाल नव नील कंज।।
पिक बचन चरित बर बर्हि कीर। सित सुमन हास, लीला समीर।।
कह तुलसिदास सुनु सिव सुजान। उर बसि प्रपंच रचे पंचबान।।
करि कृपा हरिय भ्रम-फंद काम। जेहि हृदय बसहिं सुखरासि राम।।  
 

पुस्तक | विनय पत्रिका कवि | गोस्वामी तुलसीदास भाषा | अवधी रचनाशैली | मुक्तक छंद | पद