सेवहु सिव-चरन-सरोज-रेनु

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सेवहु सिव-चरन-सरोज-रेनु। कल्यान-अखिल-प्रद कामधेनु।।
कर्पूर-गौर, करुना-उदार। संसार-सार, भुजगेन्द्र-हार।।
सुख-जन्मभूमि, महिमा अपार। निर्गुन, गुननायक, निराकार।।
त्रयनयन, मयन-मर्दन महेस। अहँकार निहार-उदित दिनेस।।
बर बाल निसाकर मौलि भ्राज। त्रैलोक-सोकहर प्रमथराज।।
जिन्ह कहँ बिधि सुगति न लिखी भाल। तिन्ह की गति कासीपति कृपाल।।
उपकारी कोऽपर हर-समान। सुर-असुर जरत कृत गरल पान।।
बहु कल्प उपायन करि अनेक। बिनु संभु-कृपा नहिं भव-बिबेक।।
बिग्यान-भवन, गिरिसुता-रमन। कह तुलसिदास मम त्राससमन।।
 

पुस्तक | विनय पत्रिका कवि | गोस्वामी तुलसीदास भाषा | अवधी रचनाशैली | मुक्तक छंद | पद