ऊधो! इतनी कहियो जाय

पीछे

ऊधो! इतनी कहियो जाय।
अति कृसगात भई हैं तुम बिन बहुत दुखारी गाय।
जल समूह बरसत अँखियन तें, हूँकत लीने नाँव।
जहाँ जहाँ गोदोहन करते ढूँढ़त सोइ सोइ ठाँव।
परति पछार खाय तेहि तेहि थल अति ब्याकुल ह्वै दीन।
मानहुँ सूर काढ़ि डारे हैं बारिमध्य तें मीन।। 

पुस्तक | सूरसागर (भ्रमरगीतसार) कवि | सूरदास भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | पद