ऊधो! जाहु तुम्है हम जानै

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ऊधो! जाहु तुम्है हम जानै।
स्याम तुम्है ह्याँ नाहिं पठाए तुम हौ बीच भुलाने।
ब्रजवासिन सों जोग कहत हौ, बातहु कहन न जानै।
बड़ लागै न बिबेक तुम्हारो ऐसे नए अयाने।
हमसों कही लई सो सहि कै जिय गुनि लेहु अपाने।
कहँ अबला कहँ दसा दिगंबर सँमुख करौ, पहिचानै।
साँच कहौ तुमको अपनी सौं बूझति बात निदाने।
सूर स्याम जब तुम्हैं पठाए तब नेकहु मुसुकाने ?  

पुस्तक | सूरसागर (भ्रमरगीतसार) कवि | सूरदास भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | पद