ऊधो! ब्रज में पैठ करी

पीछे

ऊधो! ब्रज में पैठ करी।
यह निर्गुन गाँठरी अब किन करहु खरी।
नफा जानि कै ह्याँ लै आए सबै वस्तु अकरी।
यह सौदा तुम ह्वाँ लै बेचौ जहाँ बड़ी नगरी।
हम ग्वालिन, गोरस दधि बेचौं, लेहि अबै सबरी।
सूर यहाँ कोउ ग्राहक नाहीं, देखियत गरे परी।।

पुस्तक | सूरसागर (भ्रमरगीतसार) कवि | सूरदास भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | पद