ऊधो! तुम हौ अति बड़भागी
पीछेऊधो! तुम हौ अति बड़भागी।
अपरस रहत सनेह तगा तें नाहिन मन अनुरागी।
पुरइनिपात रहत जल भीतर ता रस देह न दागी।
ज्यों जल माँह तेल की गागरि बूँद न ताके लागी।
प्रीति नदी में पाँव न बोरयो, दृष्टि न रूप परागी।
सूरदास अबला हम भोरी गुर चींटीं ज्यों पागी।।