भजन कह्यौ, तातैं भज्यौ

पीछे

1.    भजन कह्यौ, तातैं भज्यौ; भज्यौ न एकौ बार।
        दूरि भजन जातैं कह्यौ, सो तैं भज्यौ, गँवार।। 

 

2.    पतवारी माला पकरि, और न कछू उपाइ।
        तरि संसार-पयोधि कौं, हरि-नावैं करि नाउ।। 

 

3.    यह बरिया नहिं और की, तूँ करिया बह सोधि।
        पहन-नाव चढ़ाइ जिहिं कीने पार पयोधि।।  

 

4.    समै-पलट पलटै प्रकृति, को न तजै निज चाल।
        भौ अकरुन करुनाकरौ इहिं कपूत कलिकाल।। 
 

पुस्तक | बिहारी सतसई कवि | बिहारीलाल भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | दोहा