उर में माखनचार गड़े

पीछे

उर में माखनचार गड़े।
अब कैसहु निकसत नहिं, ऊधो! तिरछे ह्वै जो अड़े।
जदपि अहीर जसोदानंदन तदपि न जात छँड़े।
वहाँ बने जदुबंस महाकुल हमहिं न लगत बड़े।
को बसुदेव, देवकी है को, ना जानै औ बूझै।
सूर स्याम सुंदर बिन देखे और न कोऊ सूझै।।

पुस्तक | सूरसागर (भ्रमरगीतसार) कवि | सूरदास भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | पद