नयननि वहै रूप जौ देख्यो

पीछे

नयननि वहै रूप जौ देख्यो।
तौ ऊधो यह जीवन जग को साँचु सफल करि लेख्यो।
लोचन चारु चपल खंजन, मनरंजन हृदय हमारे।
रुचिर कमल मृग मीन मनोहर स्वेत अरुन अरु कारे।
रतन जटित कुंडल श्रवननि बर, गंड कपोलनि झाँई।
मनु दिनकर प्रतिबिंब मुकुर महँ ढूँढ़त यह छबि पाई।
मुरली अधर बिकट भौंहैं करि ठाढ़े होत त्रिभंग।
मुकुतमाल उर नीलसिखर तें धँसी धरनि ज्यों गंग।
और भेस को कहै बरनि सब अँग अँग केसरि खौर।
देखत बनै, कहत रसनस सो सूर बिलोकत और।।  

पुस्तक | सूरसागर (भ्रमरगीतसार) कवि | सूरदास भाषा | ब्रजभाषा रचनाशैली | मुक्तक छंद | पद