अन्त तें न आयो याही गाँवरे को जायो
पीछेअन्त तें न आयो याही गाँवरे को जायो,
माई बावरे जिवायो प्याइ दूध बारे बारे को।
सोई रसखानि पहिचानि कानि छाड़ि चाहै,
लोचन नचावत नचैया द्वारे द्वारे को।
भैया की सौं सोच कछू मटकी उतारे को न,
गोरस के ढारे को न चीर चीर डारे को।
यहै दुख भारी गहै डगर हमारी माझ,
नगर हमारे ग्वाल बगर हमारे को।